न भय किसी बात की,
न सही गलत का फरक है।
वाहियात सी सोच है
और बस दहशत की समझ है।।
किसने समझा दिया,
कि बेगुनाहों को मारो।
जन्नत है इसी में,
यही तो जीने का सबब है।।
मूर्ख कुछ लोगो को मिलती है,
नसीहत ये कैसी?
बन बैठते हैं दरिंदे,
हरकतें इनकी वहशी।।
मन में इनके क्यों,
कोई प्रेम का पुष्प नहीं खिलता।
नफ़रत क्यों है इनको इतनी,
आतंकी हमलों से क्या ही भला मिलता।।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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