अनुपम दिन का चेहरा,
मधुर मनोहर मृदुल मनोरम,
उन दृश्यों का पहरा।
शीतल मंद पवन का झोंका,
बाँधे है तन, मन को रोका,
हरीयाली जब दृष्टि खींचे,
चल दूं मैं भी आँखें मिचे।
बहती सी धारा का सौरभ,
चहचहाती पंछियों का कलरव,
सुन सुन कर यह ध्वनि लुभानी,
हर्षित होते हैं सब प्राणी।
खेतों में फसलें मुस्काए,
कहीं समीर जो अंक लगाए,
शुद्ध स्वच्छ सौंदर्य सुहावन,
सबको लगते हैं मनभावन।
मन को खो कर आँखें मूंदे,
सुमन सुमन पर ओस की बूंदें,
धन्य धरा की रुत मस्तानी,
सच में अद्भुत भोर सुहानी।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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