मेरे मन के मंदिर में प्रभु,
आप उमा संग साजो।
अपने गण को, सेवक जन को,
लेकर संग विराजो।।
तन पर स्वामी भस्म रमी हो,
गले सर्प की माला,
मस्तक पर शशि सोहत सुंदर,
अरु बाघाम्बर छाला।
हाथों में पिनाक लिए प्रभु,
आनन्द मगन हो नाचो।
मेरे मन के मंदिर में प्रभु,
आप उमा संग साजो।
अपने गण को, सेवक जन को,
लेकर संग विराजो।।
कष्ट हरो महादेव हमारे,
व्याकुल मन तेरा नाम पुकारे,
दया करो हे देव दयामय,
दूर करो दुःख सारे।
अपने तेज तम को हर लो,
बन कर आप सिराजो।
मेरे मन के मंदिर में प्रभु,
आप उमा संग साजो।
अपने गण को, सेवक जन को,
लेकर संग विराजो।।
तेरी मूरत देख प्रभु जी,
मन ही मन मुस्काऊँ,
आठों याम जपूं नमः शिवाय,
सानिध्य तेरा बस चाहूं।
बन कर ऐसी ध्वनि डमरू की,
कानों में बस बाजों ।।
मेरे मन के मंदिर में प्रभु,
आप उमा संग साजो।
अपने गण को, सेवक जन को,
लेकर संग विराजो।।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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