बीतते वक्त की क्या कहानी कहूं,
कैसे कटती रही जिंदगानी कहूं।
जो मिला था कभी, पल में ही खो गया,
हाथ जैसे लगा यूं हवा हो गया,
वक्त की मार को हाय कितना सहूं
आँख से बहने आए हो जैसे लहू।
बीतते वक्त की क्या कहानी कहूं,
कैसे कटती रही जिंदगानी कहूं।
फूल की आस में, बस थे कांटे मिले,
दर्द ही दर्द उनके हवाले मिले,
वो मिले चल पड़े फिर मुंह मोड़ कर,
उनकी ही याद में बस तड़पता रहूं।
बीतते वक्त की क्या कहानी कहूं,
कैसे कटती रही जिंदगानी कहूं।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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