कितना छोटा सीधा सादा भोला भाला बच्चा था,
सच कहते हैं लोग कि यारों बस बचपन ही अच्छा था।
भोली भाली प्यारी आँखें, गालों की चमक नूरानी थी,
कहीं किसी एल्बम में बंद यादें ये सुहानी थी।
अपनी छवि कोई पल पल देखूं , देख देख उल्लास करूं,
कजरारे ये नयन नक्स और इन से ही बस नैन भरूं,
देख देख कर बचपन अपना बीती बातें याद करूं,
बड़ा सुहाना था वो जमाना शब्दों में मैं क्या ही कहूं।
तस्वीर हो गई भले पुरानी यादें अब भी ताजा जी,
अब भी अकड़ जस की तस है, माँ का बेटा राजा जी,
जबरन मेरी छवि निकाली कैमरे वाले चाचा जी,
देख के सुंदर छवि सुहानी यादें हो गई ताजा जी।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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