*प्रभु श्री राम वंदना*
श्यामल विमल स्वरूप प्रभु, छवि है ललित ललाम।
नैना देखत देखत रहते, तुझको आठों याम।।
मुख पर शोभा चंद्र सरिस और द्युति दिनकर समान।
व्याकुल मन को तृप्त जो कर दे, ऐसी मधुर मुस्कान।।
चरण पखारूं रूप निहारूं, भजन करूं अविराम।
बिन दर्शन के काटी न जाए, जीवन ये तमाम।।
दास बना कर हृदय लगा लो ज्यों थे श्री हनुमान।
या फिर अपने धाम बुला लो, हर लो न ये प्राण।।
नारायण तुम नर तन धारे, रावण संग संग्राम।
जिह्वा मेरी रटती रहती प्रभु जी तेरा नाम।।
कैसे तेरी करूं वंदना ?, क्या है विधि विधान ?,
बोध नहीं है भक्ति पथ का मैं बालक नादान ।।
हाथ में तेरे चक्र सुदर्शन, बसती श्रीनिधि वाम।
तुझको ध्याऊं तुझको पूजु, बारम्बार प्रणाम।।
नर तन धारी अवध बिहारी, देव बड़े हो महान।
राम नाम की धारा सदृश, अमृत कर लूं पान।।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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