मगर बात अपनी है, तुमको बतानी,
यही सर्द मौसम की रुत थी सुहानी,
हसीं मोड़ पे थी, कहीं जिन्दगानी।
खुशी के सफ़र पे कदम चल रहे थे,
कहीं दिल ही दिल में प्रणय पल रहे थे,
मिली थी मुझे वो, मगर खो गई है,
उसकी वो दुनिया अलग है नई है।
कहीं भी रहे बस रहे हंसते गाते,
सदा ही रहे वो यूंही मुस्कुराते,
ताउम्र सबके आशीष उनपे बरसे,
किसी चीज़ को वो कभी भी न तरसे।
किस्मत से ज़्यादा हौसले ये बड़े है,
नई राह पर अब हम भी चल पड़े हैं,
वहाँ खुशियों का ठिकाना नहीं है,
हमें भी यहाँ कुछ जताना नहीं है।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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