प्रियवर तेरी याद में कैसे अश्क बहाए,
अन्तर मन की पीड़ा का अंतर पल पल बढ़ता जाए।
ओढ चांदनी दिव्य गगन तल बैठी हूं मुस्काए,
मेरा भी सजना संवरना सजना जी को भाए,
मेरे मन का मनका तो बस उनके नाम से फेरूं,
सारे अंक प्रेम में दे कर अंकों में ही घेरूं।
मंद मंद बस छवि निहारूं उनके मुख का पानी,
इस पानी से प्यास बुझे न कैसी ये परेशानी,
जैसे जल बिन मछली तड़पे वैसी जलन बस पाऊं,
हाय विरह के अंग अंग से व्यर्थ ही जोड़े जाऊं।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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