यूं समझो के दर्पण है, ये मेरी पहली किताब है,
है आपबीती इसमें, मित्र ये लाजवाब है,
इन डायरी के पन्नों में मेरा सब कुछ जनाब है।
हंसी भी छिपी इसमें, इसमें आंसुए नायब हैं,
इसी के अभ्यन्तर में मेरे अधूरे ख़्वाब हैं
इसी के पन्नों में छिपे दर्द बेहिसाब है,
इन डायरी के पन्नों में मेरा सब कुछ जनाब है।
रात की कहानी का ये अहम सा पात्र है,
यूं न समझो के बस दैनंदिनी मात्र है,
इसी में लड़कपन है, जवानी का रुआब है,
इन डायरी के पन्नों में मेरा सब कुछ जनाब है।
एक एक पन्ने में है जीवन के रस शामिल,
मेरी भावनाओं का जैसे गहरा तालाब है,
इस एक के आगे बौने सब खिताब है,
इन डायरी के पन्नों में मेरा सब कुछ जनाब है।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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