जगत की धूप में जल प्राणी, इस मन को रिझाओ,
सत्य की खोज में तो निकलो, भ्रमों को हराओ।
परिश्रम का आधार बनाओ, दुःख को भूल जाओ,
कबीर की वाणी में जी लो, सफर में खो जाओ।
गहन सा अभिमान भी सबके, मन में बसा न जाए,
सोच-विचार में खो अमित अब, विषमता ही सताए।
जीवन के मेले में जब भी, माया फसल चुनना,
सच्चे सतगुरु की शिक्षा ही , जीवन सफल बुन ना।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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