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Thursday, February 23, 2023

सीमंतिनी

कई बार खुद को परखना जो चाहा
हर बार सभी ने बेड़ियां लगाई

टोका रोका सभी ने मुझे हर पल
अपने मन का भी कहां मैं कर पाई

आभाव में गुजार दी बचपन मैंने अपनी
कम ही पढ़ाई मेरे हिस्से आई

दहलीज तक सीमित थी दुनिया ये मेरी
जबरदस्ती के सौख थे कलछी कड़ाही

सबकी उम्मीदें की मैंने पूरी
मेरी ख्वाहिशें किसी को नजर ही न आई

बीता जो बचपन जवानी जो आई
कहने लगे सब मुझको पराई

न पूछा न जाना किसी ने हाल मेरा
देखा शुभ दिन कर दी बिदाई

न्यौछावर किया है जीवन ये अपना
मैंने अपनी भूमिका बखूबी निभाई

अब बस जीवन से उम्मीद है इतनी
बनी रहूं मैं प्रेम की परिभाषा रोशन करूं सजन की अंगनाई

हो लंबी उम्र पिया जी तुम्हारी
मैंने तेरी खातिर ये मांग है सजाई

कभी दहलीज मायके की तो कभी ससुराल की सीमा पर हूं ठहरी
शायद इस लिए तो नहीं मैं सीमंतिनी कहलाई ??

पर इन सारी ही चीजों में रहा कुछ अधुरा ही सदैव,
आज भी जारी है मेरे आस्तित्व की लड़ाई।
                  – अमित पाठक शाकद्वीपी 

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