सब बेरंग हो गए
बदलता रंग देखा उनका
हम दंग हो गए
रंग लाल मेरे पसन्द का
बस मलाल दे गया
लिबास लाल ही तो था
उन्हें कोई और ले गया
पीले रंग पर भी कहो
क्या सवाल करूं ?
हल्दी की रस्म या
दिल पर चोट की बात करूं
हरा रंग भी अब
हमें कहां भाता है ?
हराया किस्मत ने हमें
ये याद दिलाता है
रंग हसीन सारे ही खो गए
रंग असलियत का देख कर गमगीन हो गए
समझाया खुद को बोहोत अकेले में
भीड़ में हम भी रंगीन हो गए
हर रंग से शिकायत है
हर रंग में है मस्ती प्रीत की
रंगा है जो खुद को नए रंग में तो समझा
विफलता के रंग के आगे है गुलाल भी जीत की
– अमित पाठक शाकद्वीपी
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