बच्चे कॉन्वेंट में पढ़ाते हैं
कुछ लोग मेरे देश में
चरित्र दोहरा दर्शाते हैं
उन्हें न रास आती है
सभ्यता संस्कृति अपनी
पश्चिमी देशों के रंग में रंग कर
ख़ुद को सिविलाइज्ड बताते हैं
बोली जाती नहीं हिन्दी
तत्सम रूप में जिनसे
बड़े गुमान में कुछ लोग
अंग्रेजी में बतियाते हैं
जिन्हें परहेज है साड़ी से
जींस पहन कर इतराती है
दिवस हिंदी का जो आया तो
वो भी हिंदी प्रेम का झूठा व्यतित्व दिखाती है
मायने मातृ भाषा की
घट रही इतनी
ए बी सी डी याद रहती है
क ख ग घ भूली जाती है
मना जो रहे हो तुम
आज दिवस मेरा
देख कर ये दिखावा भी
हिन्दी बड़ा शर्माती है
– अमित पाठक शाकद्वीपी
स्वरचित मौलिक रचना
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