आतुर मन से राह निहारें ।
रूप देवी का कितना प्यारा ,
महिमा विदित सकल संसारा ।
माँ के कितने रूप निराले,
रोग कष्ट सब हरने वाले।
कैसे भक्ति करू कल्याणी ,
किस विधि करूं अरज भवानी।
मैं मूरख नादान पुजारी,
जानू न भेद विधान तुम्हारी।
जन जन के कल्याण हो करती,
हर लो मैया जी कष्ट हमारी।
दरश दिखा कर कृपा करदो,
सुख समृद्धि से जीवन भरदो।
आएंगे तेरे धाम को माता ,
पूजेंगे मूरत हे भक्त जन त्राता ।
तूने सबकी विपदा टारि,
कब आएं मुझ दीन की बारी।
आठों प्रहर बस देवी गुण गाऊं ,
देवी चरण में शीश नवाऊं।
करूं आरती मात तुम्हारी,
करना क्षमा तुम भूल हमारी।
मंदिर मंदिर तेरे पाव पखारे,
जिह्वा बस तेरा नाम उच्चारे ।
कब आएंगी माँ भवन हमारे,
आतुर मन से राह निहारें ।
- स्वरचित अमित पाठक शाकद्वीपी