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Friday, April 29, 2022

जिंदगी की फितरत

है शाश्वत कुछ नहीं जग में
सबकुछ बदलना पड़ता है

कभी तेज दौड़नी होती है रेस
कभी देर तक ठहरना पड़ता है 

कभी बड़े अरमान से करते है कुछ
कभी कुछ बे मन से करना पड़ता है

कभी मिल जाते है कुछ अजीज लोग जीवन में
कभी एक शख्स की खातिर बोहोत तड़पना पड़ता है

मुस्कुराना पड़ता है कभी गम में
तो कभी ख़ुशी में भी आँसू आते है

कभी लोग देते है घाव बोहोत गहरा सा मन को
कभी लोग बड़े प्रेम से मरहम भी यहाँ लगाते है

कभी हासिल हो जाती है मंजिल चार ही कदम पर 
कभी मंजिल की तलाश में दर दर भटकना पड़ता है 

ये बातें नियत नहीं कुछ भी
फितरत है कि पल पल बदलना पड़ता है 

जीवन ऐसा ही 'अमित'
यहाँ स्वतः गिर कर सम्भलना पड़ता है 

               - अमित पाठक 'शाकद्वीपी'
                      (बोकारो , झारखण्ड)
                सम्पर्क सूत्र : 09304444946

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