समर्पण का श्रृंगार है
श्वेत वस्त्र में मानो
'नर्स' देवी का अवतार है
विपदा की विकट समस्या थी
देश कितना परेशान था
कोई बचालो कोई सम्भालो
जग का ऐसा आह्वान था
सेवा धर्म की रक्षा में उसने
न जाने कितने बलिदान दिए
अपनी चिंता को भूल कर
कइयों को जीवन दान दिए
रखा अडिग विश्वास स्वयं पर
सबको हिम्मत से बांधा है
मातृत्व भरा हृदय है कोमल
पर कितना दृढ़ उसका कंधा है
लिया संकल्प की डटी रहूंगी
चाहे जान भी बारुंगी
जब तक सीने में श्वास प्रबल है
मैं हिम्मत नहीं हारूँगी
दुबके थे सब अपने घरों में
कैसा संक्रमण का प्रहार था
योद्धा बन कर युद्ध भी जीती
सेवा सुश्रुषा ही तलवार था
करुणा मन में रख कर उसने
सबका ही देखभाल किया
ढाल बन कर डटी रही
जब जब कोरोना विकराल हुआ
अथक परिश्रम के बल पर
जब किसी का जीवन बचाया है
आत्मसंतोष की भाव ने
उसका सुंदर मुख सजाया है
देते है सभी बधाई डॉक्टरों को
आप ईश्वर के रूप को
कैसे भूल जाये नर्स जी आपको
आप देवी का स्वरूप हो
शब्दो का सुमन अर्पित
कहो कैसे गुणगान करू
अंतःकरण है द्रवित हमारा
मैं तेरा सम्मान करू
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- अमित पाठक शाकद्वीपी
बोकारो , झारखण्ड
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