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Friday, April 29, 2022

जिंदगी की फितरत

है शाश्वत कुछ नहीं जग में
सबकुछ बदलना पड़ता है

कभी तेज दौड़नी होती है रेस
कभी देर तक ठहरना पड़ता है 

कभी बड़े अरमान से करते है कुछ
कभी कुछ बे मन से करना पड़ता है

कभी मिल जाते है कुछ अजीज लोग जीवन में
कभी एक शख्स की खातिर बोहोत तड़पना पड़ता है

मुस्कुराना पड़ता है कभी गम में
तो कभी ख़ुशी में भी आँसू आते है

कभी लोग देते है घाव बोहोत गहरा सा मन को
कभी लोग बड़े प्रेम से मरहम भी यहाँ लगाते है

कभी हासिल हो जाती है मंजिल चार ही कदम पर 
कभी मंजिल की तलाश में दर दर भटकना पड़ता है 

ये बातें नियत नहीं कुछ भी
फितरत है कि पल पल बदलना पड़ता है 

जीवन ऐसा ही 'अमित'
यहाँ स्वतः गिर कर सम्भलना पड़ता है 

               - अमित पाठक 'शाकद्वीपी'
                      (बोकारो , झारखण्ड)
                सम्पर्क सूत्र : 09304444946

Thursday, April 21, 2022

नर्स – हमरूह प्रकाशन में प्रकाशित

त्याग की है मूर्ति 
समर्पण का श्रृंगार है
श्वेत वस्त्र में मानो
'नर्स' देवी का अवतार है

विपदा की विकट समस्या थी
देश कितना परेशान था
कोई बचालो कोई सम्भालो
जग का ऐसा आह्वान था

सेवा धर्म की रक्षा में उसने 
न जाने कितने बलिदान दिए
अपनी चिंता को भूल कर
कइयों को जीवन दान दिए

रखा अडिग विश्वास स्वयं पर 
सबको हिम्मत से बांधा है
मातृत्व भरा हृदय है कोमल
पर कितना दृढ़ उसका कंधा है

लिया संकल्प की डटी रहूंगी 
चाहे जान भी बारुंगी
जब तक सीने में श्वास प्रबल है
मैं हिम्मत नहीं हारूँगी

दुबके थे सब अपने घरों में 
कैसा संक्रमण का प्रहार था
योद्धा बन कर युद्ध भी जीती
सेवा सुश्रुषा ही तलवार था

करुणा मन में रख कर उसने
सबका ही देखभाल किया
ढाल बन कर डटी रही 
जब जब कोरोना विकराल हुआ

अथक परिश्रम के बल पर 
जब किसी का जीवन बचाया है 
आत्मसंतोष की भाव ने 
उसका सुंदर मुख सजाया है

देते है सभी बधाई डॉक्टरों को
आप ईश्वर के रूप को
कैसे भूल जाये नर्स जी आपको
आप देवी का स्वरूप हो 

शब्दो का सुमन अर्पित
कहो कैसे गुणगान करू
अंतःकरण है द्रवित हमारा
मैं तेरा सम्मान करू

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        - अमित पाठक शाकद्वीपी 
              बोकारो , झारखण्ड




Sunday, April 17, 2022

पिता का साया




पिता का साया
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*कैसे लिखोगे शब्दो में पिता के अभाव को*
*कोई मरहम नहीं है जो भर दे इस घाव को*

*सहोगे जो अकेले जिम्मेदारियों के बोझ को*
*शायद तब समझ सको पिता के प्रभाव को*

*याद आने पर छलकेंगे आँसू स्वतः ही*
*उन बिन कौन खेवेगा जीवन नाव को*

*व्यथा अपनी अपने आप में सहते हैं*
*तुम कैसे बर्दाश्त करोगे समाज के दबाव को*

*जाने पर उनकी होगी तस्वीर का तो सहारा*
*पर तरसोगे मुझ सा उनकी आवाज को*

*सामने भाई बहन माँ को दोगे हौसला*
*पर अकेले में करोगे प्रार्थना भगवान से*
*कि प्रभु ऐसा कभी भी न किसी के साथ हो*

*रहे उम्र भर 'पिता का साया' सब पर*
*पिता को भी पुत्र पर हमेशा विश्वास हो*

      *- अमित पाठक शाकद्वीपी* 
       *(बोकारो , झारखण्ड)*

Saturday, April 9, 2022

श्री राम चरित

हैं देवो के भी वन्दनीय , विष्णु के अवतार हैं,
उनकी कृपा प्रभाव से टिका हुआ संसार है ।

दशरथ नन्दन के भाल पर चन्दन शोभायमान है,
दसों दिशाओं में हो रहा उनका ही गुणगान है ।

हर लिए जिनके चरण कमल ने शिला के विपत्ति घाव को,
शब्दों में लिखना कठिन है  मेरे राम के स्वभाव को ।

जटायु पक्षिराज उनका नाम ले कर तर गया,
थी भक्ति भावना प्रबल जो प्राण तक न्यौछावर किया ।

कर में धनुष धार कर अनेक शत्रु संहार किए,
मुनियों की यज्ञ की रक्षा में सिंहासन भी वार दिए ।

पिता के वचन के लिए था राज पाट त्याग दिया,
वचन की क्या महत्ता है जग को ऐसा आभास दिया ।

मृदुभाषी सरलतम मन में न कोई द्वेष था,
निकल पड़े जो वन में तो वनवासीयों सा ही भेष था ।

जाति भेद है गलत उनकी सबसे पहली यही सिख रही,
शबरी के प्रेम भाव वश थे जूठे बेर तक चखी ।

आनन्द विनोद था न वन में केवल विषाद था,
गंगा पार कराने को उनको खड़ा एक निषाद था ।

वनचर के बीच रहे तो नियति भी कठोर रही,
मृग की माया के कारण माता सीता खो गई ।

था एक अहंकारी ने माता सीता को हर लिया,
विपदा के ऐसे पल में कपियों ने बड़ा साथ दिया ।

अंततः विजय हुई सबके सहयोग से,
सीता को पुनः पा लिया अनन्य प्रेम योग से

विश्व के आधार ऐसे मेरे श्री राम है,
मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से धन्य धरती धाम है ।

जगत के तम को हर ले ऐसे दिवाकर है वो,
क्षमा करना हे नाथ तुम हुई जो कोई भूल हो।

       -: श्री राम चरण को समर्पित :-
           - ✍️ अमित पाठक शाकद्वीपी

श्री मदन मुरारी कृष्ण

उनके मुख की ज्योति जस ज्योति, अनुपम रूप क्या उपमा होती। उनका पानी जैसे पानी, मंद मृदुल मुस्कान सुहानी। वाणी जैसे शहद अधर पर, सुनना चाहूं ठहर...