प्रभु को कर के याद ।
स्वामी कब तक राह निहारूं
कब आओगे नाथ ।।
विधि ने भी क्या भाग्य लिखा है,
नियति देती मात।
नीर समान अश्रु की धारा,
बहती है दिन रात।।
विरह अनल में तन मन जलते,
मिला है हृदय आघात।
खुशियां बर्फ समान ही जम गई,
अश्कों की बस सौगात।।
प्रेम दरश को व्याकुल अँखियाँ
चाहें दर्शन खास।
आओ गे निश्चय ही छुड़ाने,
मन में है विश्वास।।
धर्म की हानि और न हो अब,
करो दुष्ट का नाश।
सत्य सनातन सृष्टि कर दो,
भर दो ज्ञान प्रकाश।।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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