मातृवत है नेह तुम्हारा,
अद्भुत तेरी माया,
तेरे संग है जीवन बीता,
संग संग बढ़ी ये काया।
जब जब थी मैं कभी अकेली,
तब तब तेरी गोद में खेली,
तुझको सींचा, मेड़ बनाया,
तेरे मीठे फल को खाया।
तेरी ही शाखाओं ने दी,
तपती धूप में छाया,
सूरज की इन तीक्ष्ण किरणों ने,
जब जब मुझको सताया।
सुबह सबेरे तुम तक ठहरी,
छांव में तेरी कटी दोपहरी,
साँझ प्रहर फिर दीप जलाकर,
करती थी मैं तेरी फेरी।
आलिंगन में तेरे मैंने,
स्नेह अपनों सा पाया,
लगता है यूं मां बापू ने,
प्रेम से गले लगाया।।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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