बरसाने में खेले मोहन,
राधा के संग होली,
थाल सजी अबीर गुलाल की,
चंदन कुंकुम रोली।
राधा के रंग श्याम रंगे तो,
राधा श्याम रंग की हो ली,
अधर पर मुस्कान सजाया,
मुख से कुछ न बोली।
अंग अंग सुकुमार प्रियाजु,
जोगन जैसी हो गई,
मधुर मनोहर मदन मोहन के,
प्रेम रंग में खो गई।
पल भर में रंग गया वृंदावन,
गोप ग्वाल की टोली,
याद रह गई राधा के मन,
श्याम के संग की होली।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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