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Monday, September 30, 2024

अनाधिकृत संगठनों का बढ़ता खतरा : प्रमाण पत्र, प्रतिस्पर्धा और पदकों के नाम पर ठगी

अनाधिकृत संगठनों का बढ़ता खतरा : प्रमाण पत्र, प्रतिस्पर्धा और पदकों के नाम पर ठगी 


आजकल, शिक्षा और प्रतिस्पर्धा की दुनिया में कई ऐसे संगठन सामने आ रहे हैं, जो बिना किसी सरकारी मान्यता या पंजीकरण के विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन कर रहे हैं, किताबें प्रकाशित कर रहे हैं और पुरस्कार वितरण कर रहे हैं। ये संगठन न केवल छात्रों और युवाओं के भविष्य के साथ खेलते हैं, बल्कि समाज में एक गलत संदेश भी फैलाते हैं। ऐसे धोखाधड़ी संगठनों के बारे में जागरूक होना अत्यंत आवश्यक है। सबसे विकट समस्या है इन धोखाधड़ी संगठनों की पहचान? इन संगठनों की पहचान करना कठिन होता है क्योंकि वे आमतौर पर बहुत आकर्षक फर्जी वेबसाइटों और विज्ञापनों के माध्यम से अपने आपको पेश करते हैं। इनके द्वारा आयोजित प्रतियोगिताएं अक्सर बिना किसी मान्यता के होती हैं, और विजेताओं को दिए जाने वाले प्रमाण पत्र और पदक किसी भी सरकारी या प्राधिकृत संस्था द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं होते हैं। आम तौर पर ये संस्थाएं लगभग हर सोशल मीडिया माध्यम पर अपना विस्तार बनाएं हुए है और भोले भाले नवांकुर प्रतिभाओं को ठग रहे हैं।
लक्षण :–
१. बिना पंजीकरण के कार्य : ये संगठन न तो उद्यम पंजीकरण में हैं और न ही जीएसटी पोर्टल पर फिर भी फर्जी तरीको से निम्न गुणवत्ता की पुस्तक प्रकाशित करना या अन्य प्रतिस्पर्धा के नाम पर ठगी।
२.फर्जी वेबसाइट : अक्सर ये अत्याधुनिक वेबसाइट्स बनाते हैं, लेकिन उनके पीछे कोई ठोस आधार नहीं होता। फ्री पोर्टल या ब्लॉग बना कर ये अपने आप को बेहतर और वास्तविक बतलाने का भरपूर प्रयास करते हैं।
३.अत्यधिक शुल्क : प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए हजारों रुपए अंतरराष्ट्रीय प्रमाण पत्र जारी करने के नाम पर वसूलते हैं जबकि किसी गली मोहल्ले में भी इनकी कोई वास्तविक पहचान नहीं होती न ही कोई मुख्यालय या प्रमाणिक पता सार्वजनिक होता है।
४.निष्पक्षता का अभाव : इनके द्वारा आयोजित प्रतियोगिताओं में चयन प्रक्रिया पारदर्शी नहीं होती। हर दूसरे दिन कोई नई प्रतियोगिता नए नए नामों से चलती ही रहती है और इन्ही सब तरीकों से ये अपने जीवन यापन के लिए लोगो को मूर्ख बना कर कर घन जुटाने में लगे हैं।

शिक्षा प्रणाली पर प्रभाव :–

धोखाधड़ी संगठनों का सबसे बड़ा असर शिक्षा प्रणाली पर पड़ता है। ये संगठन छात्रों को भ्रमित करते हैं, जिससे वे अपना समय और पैसे बर्बाद करते हैं। कई बार, ये संगठन ऐसे प्रमाण पत्र जारी करते हैं, जिन्हें भविष्य में नौकरी के लिए महत्वपूर्ण मानकर उपयोग किया जाता है, जबकि वास्तव में ये प्रमाण पत्र किसी मान्यता प्राप्त संस्था द्वारा नहीं दिए गए होते।इ न संगठनों का मुख्य लक्ष्य युवाओं का शोषण करना होता है। वे युवाओं के असुरक्षित भविष्य का फायदा उठाते हैं। प्रतिस्पर्धाओं के नाम पर हजारों रुपये वसूलते हैं, जबकि इनके द्वारा दिए गए पुरस्कारों का कोई मूल्य नहीं होता। कई छात्र अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए इन संगठनों पर निर्भर हो जाते हैं, जो उन्हें निराशा के अलावा कुछ नहीं देते। जब ये संगठन नकली प्रमाण पत्र और पदक वितरित करते हैं, तो समाज में एक गलत संदेश फैलता है कि शिक्षा का कोई मूल्य नहीं है। छात्र समझते हैं कि बिना मेहनत किए भी वे पुरस्कार प्राप्त कर सकते हैं, जो कि एक अत्यंत हानिकारक धारणा है। यह शिक्षा के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।

समाज के भिन्न भिन्न अंगो की धोखाधड़ी के खिलाफ भूमिका :–

भारतीय संविधान के अनुसार, धोखाधड़ी और धोखाधड़ी करने वाले संगठनों के खिलाफ कड़े कानून हैं। लेकिन इन संगठनों का पता लगाना और उन्हें कानूनी कार्रवाई का सामना कराना चुनौतीपूर्ण होता है। अक्सर ये संगठन अपने पते और पहचान को छिपाने में सफल हो जाते हैं। धोखाधड़ी से बचने के लिए कुछ निम्नलिखित उपाय अपनाने चाहिए।

  • जागरूकता फैलाना : युवाओं और अभिभावकों को इन संगठनों के बारे में जागरूक करना चाहिए। उन्हें समझाना चाहिए कि बिना मान्यता प्राप्त प्रमाण पत्र और पदक का कोई मूल्य नहीं होता।
  • सरकारी सहायता : सरकार को चाहिए कि वह ऐसे संगठनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे और धोखाधड़ी करने वालों के खिलाफ कानून लागू करें।
  • शिक्षण संस्थानों की भूमिका : शिक्षण संस्थानों को भी ऐसे संगठनों के खिलाफ जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए, ताकि छात्र सही जानकारी प्राप्त कर सकें।
  • समुदाय की भागीदारी : समुदाय के सदस्यों को भी इन धोखाधड़ी संगठनों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए और एकजुट होकर इनका सामना करना चाहिए।
क्या करें ? कैसे बचें इनसे ?
साहित्य में धोखे से बचने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाने चाहिए – 
• किसी भी संस्था से जुड़ते समय पहला ही प्रश्न उनकी पात्रता और पंजीयन पर पूछे। उनसे उनकी सरकार की भिन्न भिन्न इकाइयों से प्राप्त मान्यताओं को भली भांति जांचें परखें। कोई संस्था यदि अपना उद्यम पंजीकरण संख्या या जीएसटी संख्या नहीं साझा करें तो समझिए कि वह वैद्य संस्थान नहीं है आपको खतरा हो सकता है। 
• एक बार पंजीकरण संख्या प्राप्त हो जाय तो उसे उद्यम वेरिफिकेशन पोर्टल पर अथवा जीएसटी पोर्टल पर डाल कर यह सुनिश्चित कर लें कि उक्त संस्था को प्राकाशन या मुद्रण या अन्य कौन कौन से अधिकार प्राप्त है। यदि चीज़े अनुकूल हो तभी किसी संस्था को राशि जमा करें। 
• राशि जमा करने हेतु UPI एप्स का प्रयोग करें ताकि रशीद सुरक्षित रहें और धोखाधड़ी की अवस्था में साक्ष्य प्रस्तुत किए जा सकें।
• ऑनलाइन पैसे ले कर पुस्तक न भेजने या स्पर्द्धा में सम्मिलित नहीं करने या अवैध प्रशस्ति पत्रक जारी किए जाने पर इसकी सूचना कंज्यूमर फोरम या साइबर सुरक्षा पोर्टल पर साझा करें।
• कुछ चीजें अवश्य ही नोट करना आरंभ करें –
१. संस्था प्रमुख का नाम और नम्बर।
२. पुस्तक प्रकाशन की स्थिति में उसका आईएसबीएन (ISBN) संख्या।
३. मैगजीन में प्रकाशन पर उसका आईएसएसएन ( ISSN) संख्या।
४. संस्था का MSME में उद्यम पंजीकरण संख्या।
५. संस्था का जीएसटी पोर्टल में जीएसटी पंजीकरण संख्या

सशक्त बनिए सुरक्षित रहिए।

© अमित पाठक शाकद्वीपी 
संपर्क सूत्र : 8935857296
(संचालक – साहित्य संगम बुक्स)
संपर्क वेबसाईट : sahityasangambooks.godaddysites.com

Friday, September 27, 2024

अनाधिकृत प्लेटफार्मों की बढ़ती लहर : एक गंभीर समस्या



आज के डिजिटल युग में, जहां सूचना और संचार के माध्यमों में तेजी से वृद्धि हो रही है, अनाधिकृत प्लेटफार्मों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। ये प्लेटफार्म न केवल पुस्तकों का प्रकाशन कर रहे हैं, बल्कि विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन भी कर रहे हैं। हालांकि, इन प्लेटफार्मों की कोई सरकारी मान्यता नहीं होती, जिससे उनकी विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्न उठते हैं। इस लेख में हम अनाधिकृत प्लेटफार्मों के खतरों, उनकी गतिविधियों, और इससे बचने के उपायों पर चर्चा करेंगे। भारत में इन दिनों अनाधिकृत संस्थाओं की जैसे बाढ़ सी आ गई है। इन संस्थाओं का न ही कहीं पंजीयन होता है और न किसी प्रकार का कोई मुख्यालय या ऑनलाइन पोर्टल। हमारे और आपके आसपास के ही लोग ऐसे फर्जी संस्थाओं का नाम लेकर इन दिनों लोगों से हजारों लाखों रुपए की ठगी करने लगे हैं। कभी कुछ तो कभी कुछ नए नए प्रलोभन देकर लोगों को फसाते हैं और बेचारे अनभिज्ञ लोग इनके झांसे में आकर अपने स्वयं का नुकसान कर लेते हैं।

अनाधिकृत प्लेटफार्मों की गतिविधियाँ

1. पुस्तक प्रकाशन

अनाधिकृत प्लेटफार्मों द्वारा पुस्तक प्रकाशन एक गंभीर समस्या है। कई लेखक अपने काम को प्रकाशित करने के लिए इन प्लेटफार्मों की ओर रुख करते हैं। ये प्लेटफार्म आकर्षक विज्ञापनों और वादों के जरिए लेखकों को अपनी ओर खींचते हैं। लेकिन, लेखकों से भारी शुल्क लेने के बाद, ये प्लेटफार्म उनकी पुस्तकें प्रकाशित करते हैं, जो अक्सर निम्न गुणवत्ता की होती हैं। इसके अलावा, इन पुस्तकों का वितरण भी सीमित होता है, जिससे लेखक का श्रेय और पाठकों तक पहुंच दोनों प्रभावित होती हैं।

2. प्रतियोगिताओं का आयोजन

अनाधिकृत प्लेटफार्म विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताओं का आयोजन करते हैं, जैसे लेखन, चित्रकला, और कविता प्रतियोगिताएं। ये प्रतियोगिताएं अक्सर आकर्षक पुरस्कारों का वादा करती हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि अधिकांश प्रतियोगिताओं में कोई वास्तविक पुरस्कार नहीं होता। प्रतिभागियों से नामांकन शुल्क लिया जाता है, और विजेताओं की घोषणा में देरी होती है या फिर उन्हें ठगा जाता है। इससे प्रतिभागियों की मेहनत और समय का दुरुपयोग होता है।

3. धन जुटाने के फर्जी तरीके

इन प्लेटफार्मों की एक और बड़ी समस्या यह है कि वे लोगों से धन जुटाने के लिए फर्जी तरीके अपनाते हैं। ये अक्सर झूठे वादे करते हैं, जैसे कि "आपकी पुस्तक बेस्टसेलर बनेगी" या "आपकी रचनाएँ विश्व स्तर पर पहचान पाएंगी।" इस तरह के दावों का कोई आधार नहीं होता, लेकिन लोग इनसे प्रभावित होकर अपने पैसे खो देते हैं।

समस्याएं और दुष्परिणाम

1. कानूनी समस्याएं

अनाधिकृत प्लेटफार्मों से जुड़ने पर लेखक और प्रतिभागी कई कानूनी समस्याओं का सामना कर सकते हैं। यदि कोई लेखक अपने काम को प्रकाशित करने के लिए ऐसे प्लेटफार्म का चयन करता है और बाद में उसे ठगी का शिकार बनना पड़ता है, तो उसे न्याय पाने में बहुत कठिनाई होती है। ये प्लेटफार्म अक्सर छद्म नामों से काम करते हैं, जिससे उनके खिलाफ कार्रवाई करना मुश्किल हो जाता है।

2. मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

जब प्रतिभागी अपनी मेहनत के बाद भी असफलता का सामना करते हैं, तो यह उनके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। निराशा और अवसाद के शिकार हो जाने वाले लोग अक्सर अपनी रचनात्मकता खो देते हैं। इसके परिणामस्वरूप, साहित्यिक समुदाय में एक नकारात्मक वातावरण बनता है।

3. साहित्यिक मानकों का गिरना

अनाधिकृत प्लेटफार्मों के माध्यम से प्रकाशित सामग्री की गुणवत्ता अक्सर निम्न होती है। इससे साहित्यिक मानकों में गिरावट आती है। जब पाठक निम्न स्तर की सामग्री पढ़ते हैं, तो यह उन्हें अच्छी साहित्यिक कृतियों से दूर कर सकता है। इससे साहित्य की सच्ची सुंदरता और गहराई का नुकसान होता है।

सावधानियां और उपाय

1. प्लेटफार्म की जांच करें

किसी भी प्लेटफार्म पर काम करने या उसमें भाग लेने से पहले उसकी वैधता की जांच करें। यह सुनिश्चित करें कि वह प्लेटफार्म सरकारी मान्यता प्राप्त है। इसके लिए आप संबंधित सरकारी एजेंसियों की वेबसाइट पर जा सकते हैं या साहित्यिक संगठनों से संपर्क कर सकते हैं। आप संस्था से उसका पंजीयन प्रमाण पत्र की मांग भी कर सकते हैं। संस्था यदि वैधानिक होगी तो अवश्य ही पंजीकरण का विवरण साझा करेगी।

2. समीक्षाएं और फीडबैक पढ़ें

ऑनलाइन समीक्षाएं और फीडबैक पढ़कर पता करें कि क्या कोई प्लेटफार्म भरोसेमंद है या नहीं। अन्य उपयोगकर्ताओं के अनुभवों से आपको सही जानकारी मिल सकती है। यदि किसी प्लेटफार्म के बारे में नकारात्मक समीक्षाएं हैं, तो उससे दूर रहना बेहतर होगा।

3. संगठन से संपर्क करें

यदि आपको किसी प्लेटफार्म के बारे में संदेह है, तो संबंधित साहित्यिक या सरकारी संगठनों से संपर्क करें। वे आपको सही मार्गदर्शन कर सकते हैं और आपकी समस्याओं का समाधान भी कर सकते हैं।

4. सामुदायिक जागरूकता

अपने अनुभवों को साझा करें और दूसरों को जागरूक करें। जब लोग एकजुट होकर इस समस्या के खिलाफ आवाज उठाते हैं, तो अनाधिकृत प्लेटफार्मों की गतिविधियों को नियंत्रित करना संभव हो सकता है। सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफार्मों का उपयोग करके जागरूकता फैलाना एक प्रभावी उपाय हो सकता है।

निष्कर्ष

अनाधिकृत प्लेटफार्मों की गतिविधियों का बढ़ता प्रभाव हमारे साहित्यिक समाज के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। ये न केवल लेखक और पाठक दोनों को धोखा देते हैं, बल्कि साहित्यिक मानकों को भी गिराते हैं। इस दिशा में जागरूकता फैलाना और सही जानकारी प्राप्त करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। एक जिम्मेदार साहित्यिक समुदाय के लिए, हमें केवल विश्वसनीय और प्रमाणित प्लेटफार्मों की ओर ध्यान देना चाहिए। हमें मिलकर इस समस्या का सामना करना होगा और एक स्वस्थ, सृजनात्मक और सुरक्षित साहित्यिक वातावरण का निर्माण करना होगा।

© अमित पाठक शाकद्वीपी 

सम्पर्क सूत्र : 8935857296

Wednesday, September 25, 2024

रुत सुहानी हो अगर



रुत सुहानी हो अगर
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राहें मुस्किल सी हैं, है कठिन ये डगर,
जानें कब तक रहे, जारी ये सफ़र,
धूप सी जिन्दगी का ये, प्रहर वो प्रहर, 
छांव ढूंढे ये मन, हो न पाया मगर।

फिर से मुमकिन हुआ, टूटेंगे सबर,
साथ होंगे कभी *रुत सुहानी हो अगर ,* 
लिख के नाम हमारा, फिर मिटा ही दिया,
उनका बेरुख लहज़ा हो जैसे रबर।

मैं रहूं न रहूं होंगी बातें मेरी,
गूंजेंगी जहन में यादें मेरी,
बन के झोंका हवा का तेरा स्पर्श लूं,
साथ तेरा मुझे चाहिए इस कदर।

मैं भी मैं न रहा, तुम भी तुम न हुए,
हो गए हम जो ‘हम’, है सब कुछ अमर,
तुम को ही सोचना, चाहना हमसफ़र,
नाम तेरा ही लेते मेरे अधर।

बस इसी आश में, आश की प्यास में,
हैं स्मृतियां तेरी बस मेरे पास में,
तुमको सब सौंप दूं, या कहो क्या करूं,
तेरी ही यादों में है गुजरती उमर।

© अमित पाठक शाकद्वीपी

Friday, September 13, 2024

बेपरवाह जिन्दगी

कुछ यूं थी उन दिनों बेपरवाह जिंदगी,
हम थे मगन खुद में और साथ बस धूल मिट्टी गंदगी,
कुछ सोचने समझने का बहाना कहां था ?
उन दिनों खेल में व्यस्त ये सारा जहां था।

दोस्ती में तो जैसे सोने चांदी की चमक थी,
सारे रिश्ते थे सच्चे सबमें अनूठी महक थी,
तन पे एक भारी सा बस्ता लदा था,
पढ़ाई तो होती नहीं थी, जी बिलकुल ही गधा था।

दो रुपए मिलते थे दादा जी से मुझको,
गुल्लक में मिट्टी के सहेजा था जिसको,
वही अपनी थी पहली कमाई,
सुनहले से पल थे, थी खुशियां समाई।

वो बचपन की यादें वो मौसम सुहाना,
वो मस्ती मस्ती में दिन रात बिताना,
होली दिवाली की रौनक गजब थी,
बोली सबों की मीठी अजब थी।

अब तो ये वैसा जमाना नहीं है,
यार दोस्त तो हैं पर गहरा याराना नहीं है,
कभी जो तकलीफें थी जग को ज़ाहिर,
अब तो कुछ भी किसी को बताना नहीं है।

दुनियां हुईं है तेज इतनी,
बताई न आंकी जा सके जितनी,
बेपरवाह जिन्दगी लापरवाह हो गई है,
मस्तियां छूट गई तो दर्द आह हो गई है।

यकीनन कोई तो कहीं आस होगा,
वो गुजरा जमाना कभी पास होगा,
फिर से महक उन दिनों की जो होगी,
ए जिन्दगी तुम ऐसे कब साथ दोगी।

फिर से बिना बात बातें करेंगे,
सुकून के हवाले ये रातें करेंगे,
कभी इत्मीनान के दो लम्हे समेटे,
छोड़ कर ये भाग दौड़ पग धीमे धरेंगे।

अगर साथ चाहो तो आवाज़ देना,
साथ चलेंगे मगर साथ देना,
गम और खुशियां दोनों बांट लेंगे,
कुछ यूं फिर से वो यादें जिएंगे।

© अमित पाठक शाकद्वीपी 

श्री मदन मुरारी कृष्ण

उनके मुख की ज्योति जस ज्योति, अनुपम रूप क्या उपमा होती। उनका पानी जैसे पानी, मंद मृदुल मुस्कान सुहानी। वाणी जैसे शहद अधर पर, सुनना चाहूं ठहर...