वर्णों को वर्णों से जोड़ा,
जोड़े भाव से भाव,
फिर भी कमी कमी सी ठहरी,
कुछ तो था अभाव।
पढ़ते थे इंग्लिश विंग्लिश,
हिंदी से कहां लगाव ?
तभी तो फीके फीके से थे,
शब्दों के सब प्रभाव।
व्याकरण पर बुद्धि डाली,
सारी किताबें भी पढ़ डाली,
सारा ज्ञान फिर घोल के पी गया,
सारी बातें मन में बसाली,
फिर सोचूं के काव्य रचूं अब,
लिए पन्ने और लेखनी भी उठा तब,
फिर सोचा के लिखूं लिखूं क्या ?,
किसकी बातें किसका किस्सा ?
किस पर स्याही जाया कर दूं,
यूं ही कैसी कोई माया कर दूं,
सबने बोली हिन्दी पर लिख,
भारत माता के बिंदी पर लिख,
लिख कोई साहित्य सुहाना,
किस्सा चुन जाना पहचाना,
शब्द शब्द की माला गढ़ दे,
भाव प्रेम के उन में भर दे।
छंदों में लिख कर दिल की बातें,
हमने स्नेह पन्नो पे बाटें,
बार बार वर्तनी सुधारी,
अलंकार से रूप निखारी।
तुक मिलाए भाव सजाए,
पढ़ पढ़ ये मन मुस्काए,
उस दिन हिन्दी बहुत ही भायी,
क्षमता से परिचय करवाई।
तब से अब तक साथ न छोड़ा,
लेखनी से ही हर दौड़ दौड़ा,
न इतने दिन में कितना इसका अभ्यास किया,
जीवन के हर इक क्षण में हिन्दी का प्रयास किया।
© अमित पाठक शाकद्वीपी