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Thursday, January 18, 2024

जय श्री राम


नमामि संसार सारं सुरेशं , दिनेशं ब्रजेशं ऋषिकेशं ईशं ,
श्री राम रूपं श्री कृष्ण स्वरूपं सदा आनंदम् श्री विश्वेशं।

जय जय राम, जय श्री राम
राजा राम, सीता राम... ×2

चैत्र शुक्ल की नवमी तिथि को जन्मे अयोध्या धाम, 
विष्णु के अवतार निराले तुम्हें बारंबार प्रणाम।

जय जय राम, जय श्री राम
राजा राम, सीता राम...

मृदुल मनोहर रूप की आभा बरनी न जाए आम,
नैना देखत देखत थक गए फिर भी नहीं विश्राम।

जय जय राम, जय श्री राम
राजा राम, सीता राम...

नील सरोरूह नील मणि सम नील नीरधर श्याम,
लाजहि तनु शोभा निरखी कोटि कोटि सतकाम।

जय जय राम, जय श्री राम
राजा राम, सीता राम...

कुल इक्ष्वाकु विवस्वान गोत्र के सूर्यवंशी प्रभु राम,
जन को तारा मन को तारा तन को मिले आराम।
 
जय जय राम, जय श्री राम
राजा राम, सीता राम...

सरस स्नेह सलिल सुभग सुख, सुन्दर शोभित नाम,
दो अक्षर में जग है समाहित, जानें सारे ग्राम।

जय जय राम, जय श्री राम
राजा राम, सीता राम...

त्याग किया जब राज सिंहासन , भटके वन वन राम,
त्याग तपस्या के ही बल से कहलाए ‘श्री राम’।

जय जय राम, जय श्री राम
राजा राम, सीता राम...

संग मे जानकी जान से प्यारी दृश्य ललित ललाम,
कभी निहारू कभी पुकारू भाव न पाऊं थाम।

जय जय राम, जय श्री राम
राजा राम, सीता राम...

राम नाम का पी कर प्याला झूमूं आठों याम,
तन समर्पित मन को अर्पित भेंट करूं मैं तमाम।

जय जय राम, जय श्री राम
राजा राम, सीता राम...

शब्द सुमन से पूजन तेरा  अमित करे अविराम,
रखना प्रभु जी दया बनाकर सबके आऊं काम।

जय जय राम, जय श्री राम
राजा राम, सीता राम...

        – स्वरचित मौलिक रचना
   © अमित पाठक शाकद्वीपी (बोकारो,झारखंड)



Thursday, January 11, 2024

poetry in Newspaper

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Monday, January 8, 2024

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Wednesday, January 3, 2024

रचनाकारों के लिए लेख

साहित्य का ये कैसा दौर... (लेख)

इन दिनों साहित्य ऐसे दौर से हो कर गुजर रहा है जिसमें साहित्यकार केवल और केवल प्रसिद्धि के लिए लालायित हैं। एक दौर था जब पाठक गण अपने प्रिय लेखक, कवि या कवयित्री की कविता ढूंढने के लिए महीनों समय लगा कर सम्बन्धित पत्र पत्रिकाओं में उनके लेख ढूंढते थे। किसी विशेषांक में ही साहित्यिक रचना मिलती थी। सामाचार पत्रों की प्रसिद्धि का यह भी एक महत्व पूर्ण कारण था । पर अब तो ऐसा लगता है कि हर व्यक्ति ही साहित्यकार बन गया है । लिखने वाले की संख्या अधिक है और पाठक गण कम होते जा रहे हैं। गिने चुने सामाचार पत्रों की जगह अब हर गली में प्रिटिंग प्रेस है जहां से रोज सैकड़ों पत्र पत्रिका जारी किए जा रहे हैं जिनका उद्देश पैसे कमाना है या प्रसिद्धि कमाना या दोनो ही। साहित्य के प्रचार प्रसार के लिए बस गिनी चुनी संस्थानों में कार्य जारी है शेष सभी लाभ अर्जन पर ही पूरी दृष्टि जमाए कार्य कर रहे हैं उन्हें साहित्य के न तो प्रसिद्धि से कोई खुशी और न साहित्य के पतन पर दुःख अनुभव होता है। हर दूसरा व्यक्ति किसी न किसी सोशल मीडिया माध्यम पर किसी आभासी साहित्यिक पटल का एडमिन बना बैठा है और खुद के लाभ के लिए लोग इक्कठा किए जा रहा है। आपकी रचना कैसी है? , उनके भाव कैसे हैं? , आपकी रचना में कितनी विसंगतियां है? – जैसे प्रश्नों पर कोई विचार नहीं होता। न ही आपकी लेखन कला को परिष्कृत करने के लिए आपके कविता या लेख की विसंगतियों पर आपका ध्यान आकृष्ट कराया जाता है। आप ने दो मिनट में तुक से तुक मिला कर कुछ पंक्तियां लिख दी और किसी ऐसे सामाचार पत्र या संस्था को भेज दिया जिनको स्वयं का अस्तित्व बनाए रखने में ही परेशानी हो रही है , यदी किसी रोज़ उनको रचना न मिले तो संभवतः उनका ही प्रकाशन ठप न हो पाए। हम और आप ऐसे ही सामाचार पत्रों के पिछे पागल हुए जा रहे। किसी सामाचार पत्र को क्या अधिकार है या क्या सीमाबध्यता हमें यह भी ज्ञात नहीं होता । हम बस अनभिज्ञ होते हुए खुद की प्रसिद्धि के लिए लिख दें रहें और दर्जनों लोगों को ईमेल कर दे रहें ताकि आपकी मेरी रचनाएं बस छप जाएं। 
           सुबह से शाम तक हम सब नए नए प्रकाशक, समाचारों पत्रिकाओं के लिए ईमेल ढूंढ कर रचनाएं भेजें जा रहें और फिर सुबह होते ही इस लिए भी चिंतित हैं कि मेरी कौन सी रचना कहां छपी , सम्बन्धित पेपर की कटिंग भी ढूंढ कर हम ही सबको भेज रहें। अर्थात हम ही अपने लिए लेखक, हम ही प्रेषक और हम ही पाठक भी बने बैठे है। दुसरे साथी रचनाकार की रचना हम पढ़ते भी नहीं है और आशा करते हैं कि हमारी रचना सभी लोग पढ़े। कटु है पर सत्य यही है कि हमे बस स्वयं की प्रसिद्धि चाहिए जो किसी भी तरीके से प्राप्त हो जाए। सुधार की तो हम सोचते ही नहीं है। सुधार का अनुभव ही नही महसूस किया तो कार्य क्या करें इस दिशा में। स्वयं से सजग बने और प्रतिष्ठित तथा विस्तृत सामाचार जो विधि संगत हो और सरकार द्वारा भारत के समाचार पत्रों के पंजीयक कार्यालय (सूचना और प्रसारण मंत्रालय),सूचना भवन, सीजीओकॉम्लेक्स, लोधी रोड़, नई दिल्ली- 110003 द्वारा पंजीकृत हो और जिन्हे यहां से मूल RNI पंजीकरण संख्या प्राप्त है , ऐसे ही वास्तविक एजेंसी में अपनी रचनाएं भेजिए। पीआरबी अधिनियम, 1867 की धारा 5 स्पष्ट करती है कि भारत में समाचारपत्र इस अधिनियम में यथा निर्धारित नियमों के अनुरूप ही प्रकाशित किए जाएगें, इसके अलावा कोई भी समाचारपत्र प्रकाशित नहीं किया जाएगा। इस अधिनियम की धारा 11ख के तहत प्रकाशक द्वारा प्रकाशित प्रत्येक समाचारपत्र/पत्रिका की एक प्रति प्रेस पंजीयक को सौंपी जानी अनिवार्य है। इस प्रकार, देश में कोई पत्रिका/समाचारपत्र प्रकाशित करने के लिए भारत के समाचार पत्रों के पंजीयक का कार्यालय में उसका पंजीयन एक आवश्यकता है। भारत के समाचार पत्रों के पंजीयक का कार्यालय में किसी समाचारपत्र का पंजीयन दूसरों के द्वारा उसके शीर्षक का दुरुपयोग होने से भी बचाता है। 

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                                      – अमित पाठक शाकद्वीपी 

उनके नैना जैसे जादू

उनके नैना जैसे जादू  ••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• उनके नैना जैसे जादू , सब   को मोहे जाए, झील सरिस हाय इन नैनन में ...