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Thursday, February 23, 2023

सीमंतिनी

कई बार खुद को परखना जो चाहा
हर बार सभी ने बेड़ियां लगाई

टोका रोका सभी ने मुझे हर पल
अपने मन का भी कहां मैं कर पाई

आभाव में गुजार दी बचपन मैंने अपनी
कम ही पढ़ाई मेरे हिस्से आई

दहलीज तक सीमित थी दुनिया ये मेरी
जबरदस्ती के सौख थे कलछी कड़ाही

सबकी उम्मीदें की मैंने पूरी
मेरी ख्वाहिशें किसी को नजर ही न आई

बीता जो बचपन जवानी जो आई
कहने लगे सब मुझको पराई

न पूछा न जाना किसी ने हाल मेरा
देखा शुभ दिन कर दी बिदाई

न्यौछावर किया है जीवन ये अपना
मैंने अपनी भूमिका बखूबी निभाई

अब बस जीवन से उम्मीद है इतनी
बनी रहूं मैं प्रेम की परिभाषा रोशन करूं सजन की अंगनाई

हो लंबी उम्र पिया जी तुम्हारी
मैंने तेरी खातिर ये मांग है सजाई

कभी दहलीज मायके की तो कभी ससुराल की सीमा पर हूं ठहरी
शायद इस लिए तो नहीं मैं सीमंतिनी कहलाई ??

पर इन सारी ही चीजों में रहा कुछ अधुरा ही सदैव,
आज भी जारी है मेरे आस्तित्व की लड़ाई।
                  – अमित पाठक शाकद्वीपी 

Wednesday, February 15, 2023

रंगो से रंजिश


किस रंग में रंगे खुद को
सब बेरंग हो गए
बदलता रंग देखा उनका
हम दंग हो गए

रंग लाल मेरे पसन्द का
बस मलाल दे गया
लिबास लाल ही तो था
उन्हें कोई और ले गया

पीले रंग पर भी कहो 
क्या सवाल करूं ?
हल्दी की रस्म या 
दिल पर चोट की बात करूं 

हरा रंग भी अब 
हमें कहां भाता है ?
हराया किस्मत ने हमें 
ये याद दिलाता है

रंग हसीन सारे ही खो गए
रंग असलियत का देख कर गमगीन हो गए
समझाया खुद को बोहोत अकेले में
भीड़ में हम भी रंगीन हो गए

हर रंग से शिकायत है
हर रंग में है मस्ती प्रीत की
रंगा है जो खुद को नए रंग में तो समझा
विफलता के रंग के आगे है गुलाल भी जीत की
            – अमित पाठक शाकद्वीपी 

अश्कों की सौगात

कहती हैं माँ जानकी,  प्रभु को कर के याद । स्वामी कब तक राह निहारूं  कब आओगे नाथ ।। विधि ने भी क्या भाग्य लिखा है, नियति देती मात...