THANK YOU FOR VISITING
Wednesday, October 5, 2022
व्यथा
न ये कोई लेख है न कोई कहानी। ये एक आप बीती है जो कभी न कभी , कहीं न कहीं हम सबने महसूस किया है। कई बार सफर में हम खुद को बेहद अकेला पाते हैं। कई बार जिनसे उम्मीद की होती है वो उम्मीद पर खरे नहीं उतरते। ऐसे में हम खुद को दिलाशा देते है कि शायद हमने ही ज्यादा की उम्मीद लगा ली थी । कई बार लगता है कि अकेलेपन में जो भावनाएं है मन की उनको किसी से तो साझा करते। किसी को तो बताते अपनी बाते पर कोई होता ही नहीं है जिनसे कुछ कहा जाए। कई बार ऐसा भी लगता है कि हमारी ही बदनसीबी है। उस पल में किसी की याद भी आती है। हम खुद को कमजोर भी महसूस करते है पर जिनकी याद आती है उनसे बात कर पाने की या तो संभावना नहीं रहती या लोग नहीं रहते। उदास अपने मन को खुद से समेट कर फिर से खुद को सबके सामने मजबूत दिखाते हैं। खुद ही खुद में हंसने का दिखावा भी होता है। अपने मन की बात मन के ही किसी कोने में दबा देते हैं।ऐसा सबके साथ होता है। कभी किसी वारदात के बाद हम किसी से चीड़ से जाते है । नापसंद बढ़ सी जाती है । हम उनसे बात करना बंद कर देते हैं। खुल कर कुछ बोलने की चाहत भी नहीं रहती और सब कुछ खुद में ही सोचते और जवाब भी खुद देते हैं। हाँ हम सब ऐसे जीते हैं हाँ हम सब ऐसे जीते हैं ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
गणपति वंदना
हे सिद्धि बुद्धि सुरपति, हे सुन्दर समुख शरीर, भजन करूं कर जोड़ मैं, हे विकट विनायक वीर।। तन पे तेरे दिव्य पीतांबर, जय हो विनाश...
-
साहित्य जगत में एक नवीन आलोक प्रज्वलित करते हुए, सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं काव्य-संपादक नीता बिष्ट जौनपुरी द्वारा संकलित नवीनतम ...
-
अनाधिकृत संगठनों का बढ़ता खतरा : प्रमाण पत्र, प्रतिस्पर्धा और पदकों के नाम पर ठगी आजकल, शिक्षा और प्रतिस्पर्धा की दुनिया में कई...
-
अनूप रूप सादगी बिखेरती प्रभा तेरी, विनम्र भाव नेह से गेह देह की भरी, शांत चित्त मौन भाव रूप का श्रृंगार है, रूप देख देख चन्द्र ...
No comments:
Post a Comment