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Wednesday, July 27, 2022

सोचता हूं बाद मेरे

सोचता हूं बाद मेरे वो शख्स कितना रोएगा
जागेगा सारी रात उस रात कैसे सोएगा 
याद करेगा लम्हें जो बीते होंगे साथ में
जज़्बात को करेगा जाहिर या आंसुओं से धोएगा 
सोचता हूं बाद मेरे वो शख्स कितना रोएगा

कैसे सहेजा राख से अस्थियों को
चिता को साफ करके कैसे तुलसी बोएगा 
खो तो दिया मुझे और क्या क्या खोएगा
सोचता हूं बाद मेरे वो शख्स कितना रोएगा

क्या होगी भी कोई निशानी मेरी उसके हाथ में
देख कर तस्वीर कैसे अपना आपा खोएगा
कहेगा कैसे बात की अकेलापन सा लगता है
खुद ही खुद में इन यादों का भार कैसे ढोएगा
सोचता हूं बाद मेरे वो शख्स कितना रोएगा
       – अमित पाठक शाकद्वीपी 

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अमित पाठक शाकद्वीपी

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