थोड़ी सी ली हया, कुछ प्रेम लिए,
दोनों के रंगों को, संग संग जब किए,
अंतर्मन में कहीं जब पुकारा तुझे
मन में तब प्रीत के जल उठें थे दिए।
तेरी ही याद में तुझको गढ़ता गया,
स्नेह सा ही मेरे, चित्र बढ़ता गया,
रूप में चांदनी की छवि सोच कर,
नख सिख फिर यूँही तुझे बुनता गया।
दिल ने दस्तक सी दी, तुम हो यहीं कहीं,
दिल की आवाज को, मैं तो सुनता गया,
तेरी मौजूदगी का, जब इशारा हुआ,
हूबहू तेरा चेहरा, निखर सा गया।
वो आँखें हँसी, मुखड़ा सबनमी,
रंगते फूलों की, होठों पे जा थमी,
सादगी सी रही, फिर भी मन मोह लिया,
तेरी तस्वीर ने जो जादू किया।
स्मृतियां जब कभी ऐसे साकार हो,
प्रेम की रीत का समझो व्यवहार हो,
दिल में बसता ‘अमित’ जब कभी प्यार हो,
तो ऐसे ही स्नेह के जैसे बौछार हो,
उनको सोचो अगर सामने हर घड़ी,
जी उठेंगी सनम हर तमन्ना तेरी,
हो जाएगा उनसे फिर सामना,
उस घड़ी तू बस अपना दिल थामना।
प्रेम कागज पर यूँ ही उभर आएंगे,
महक से तुझे भी ये महकाएंगे,
खुद ब खुद उन से मिलना तेरा,
गुलाब के पुष्प सा ज्यों खिलना तेरा।
उनकी तस्वीर को देखती ये नजर,
बोलने को दिल की बातें तरसते अधर,
उनके ही नेह का ये असर है हुआ,
रंग से ही सही आज उनको छुआ।
इस स्पर्श का भी अजब मोल है,
रिश्ता उनका हमारा जी अनमोल है,
यही इशारा रहा उनके प्यार का,
ये साक्षात्कार है मेरे यार का।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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