नीर निधि में खोज रहें व्यर्थ गोताखोर मोती,
मुक्तन सी धवल ओज की फैली है मुख पर ज्योति।
लंबे लंबे लट घुंघराले नागिन सी बलखाती,
दीप्त भाल पर चमके चांदनी उपमा ही नही होती।
कान की बाली होठ की लाली मन को हरता जाता,
न न कर के हृदय फिर भी सब कुछ करता जाता।
अधरन पर मुस्कान गजब यूं दिल को दे निमंत्रण,
नयन सरोवर में डूब रहें हैं जानें कितनो के मन।
© अमित पाठक शाकद्वीपी