पहला पहला प्यार
सामने ही खड़ी थी दिल बेताब था कुछ कहने को,
इक पल सोचूं कह ही डालो इक पल सोचूं रहने दो।
लिए हाथों में गुलाब मैं सही वक्त आंकता रहा,
बोहोत देर तलक उनकी ओर ताकता रहा।
उनको न हुआ सब्र कुछ पूछ बैठे मुझसे,
ऐसे कैसे देख रहें हो यार अमित तुम ठीक हो,
बातो बातो में पूछ ही लिया क्या हाथों में छिपाया है,
प्रीत के इस मौसम में क्या कुछ उपहार मेरे लिए लाया है।
उस दिन हमने हौसला देकर दिल की बातें जहीर की,
भाव पहले से जान गई थी वो इस गुण में माहिर थी,
प्रेम के उस भाव को हम दोनों ने स्वीकार किया,
ये दिसंबर का ही था महिना जब दोनों ने प्यार किया,
संग संग चलना स्वीकार किया।
– अमित पाठक शाकद्वीपी
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