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Saturday, December 30, 2023

पहला पहला प्यार

पहला पहला प्यार
सामने ही खड़ी थी दिल बेताब था कुछ कहने को,
इक पल सोचूं कह ही डालो इक पल सोचूं रहने दो।
लिए हाथों में गुलाब मैं सही वक्त आंकता रहा,
बोहोत देर तलक उनकी ओर ताकता रहा।

उनको न हुआ सब्र कुछ पूछ बैठे मुझसे,
ऐसे कैसे देख रहें हो यार अमित तुम ठीक हो,
बातो बातो में पूछ ही लिया क्या हाथों में छिपाया है,
प्रीत के इस मौसम में क्या कुछ उपहार मेरे लिए लाया है।

उस दिन हमने हौसला देकर दिल की बातें जहीर की,
भाव पहले से जान गई थी वो इस गुण में माहिर थी,
प्रेम के उस भाव को हम दोनों ने स्वीकार किया,
ये दिसंबर का ही था महिना जब दोनों ने प्यार किया, 
संग संग चलना स्वीकार किया।
                               – अमित पाठक शाकद्वीपी

तू है एक कविता जैसी


तू है एक कविता जैसी
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तू है एक कविता जैसी,
भाव बोध हजार है,
शोभित है यूं शब्द सरस ज्यों,
रोम रोम अलंकार है,
तू है एक कविता जैसी,
भाव बोध हजार है ।।

कभी वर्तनी तेरी सुधारूं
कभी अभिव्यक्ति पर अधिकार है
कहीं कभी तू हर शैली में सुंदर
मुखड़े पर ये बिंदी, नुक्ता सा श्रृंगार है
तू है एक कविता जैसी
भाव बोध हजार है ।।

सुबह निहारू सांझ पुकारू
गुनगुनाते बारंबार है
सरल सहज मृदुल मनमोहक
रस की कोई बौछार है
तू है एक कविता जैसी
भाव बोध हजार है ।।

प्रीत रीत की मीत बनी तू
अद्भुत सा संगीत बनी तू
रोगी से इस करुण हृदय का
ये कविता ही अब उपचार है
तू है एक कविता जैसी
भाव बोध हजार है ।।
– अमित पाठक शाकद्वीपी

Monday, December 25, 2023

अंतिम विदाई

कुछ खामोशियां अचानक से शोर हो गई,
आज मुहल्ले में जल्दी ही भोर हो गईं,
आज अंतिम विदाई थी मेरी,
थी सांसों की डोर खो गई।

बड़े अदब से आज व्यवहार हो रहा था,
अर्थी , पुष्प, पीतांबरी सब तैयार हो रहा था,
कुछ अपने धर कर हाथ पैर मेरा चीत्कार कर रहे थे,
“क्यूं छोड़ कर चले गए” ऐसा पुकार हो रहा था।

कुछ लोग चल पड़े थे लकड़ियां जुटाने,
कुछ लोग गए फ़िर डोम , पंडित जी और हजाम को बुलाने,
कुछ लेप चंदन का, कुछ तुलसी के पत्ते रख कर,
नए वस्त्र से मेरा अलंकार हो रहा रहा था।

चार कंधो पर कर के बारी बारी ,
नदी के एक तट पर रुकी भीड़ सारी,
नदी के उसी तट पर कुछ मंत्रोचार हो रहा था,
जानते हो क्या था?, पिण्ड दान का संस्कार हो रहा था।

सहसा ही मुझे लाद कर एक ऊंचे आसन पर लिटाया, 
एक एक कर कई लकड़ियों से सजाया,
परिजन बैठे थे रेत पर
अंतेष्ठि के मुहूर्त पर कुछ विचार हो रहा था।

निर्णय से सबके फिर वह भी समय आया,
डोम ने अग्नि जलाई, हज्जाम बाल बनाया,
सब रो रहे थे मगर मुझको आनन्द आया
क्योंकि जीवन भर गालियां तानें देने वालों को भी वहीं पाया।

सबने की प्रदक्षिणा और मुखाग्नि लगाया,
पल भर में ही मैं दिव्य अग्नि में समाया।
जल से स्नान तो करते हैं सभी नित्य ही,
आज क्या ही दिन था मैं आग से नहाया ,
प्रभु में खुद को पाया।
                   – अमित पाठक शाकद्वीपी 



सारे घाव पे मरहम जैसा राहत ये पहुंचाता है,****************************

सारे घाव पे मरहम जैसा राहत ये पहुंचाता है,
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हर मुख पर जय घोष प्रबल है,
हर हाथ भगवा लहराता है,
किए कितने संघर्ष जतन थे,
सब याद दिलाता जाता है,
सारे घाव पे मरहम जैसा राहत ये पहुंचाता है,
एक स्वर में श्री राम का नारा जब कानो में आता है।

श्यामल विमल स्वरूप मनोहर,
मेघवर्ण पीतांबर तन पर,
देख रूप की अद्भुत शोभा,
मन हरता सा जाता है 
सारे घाव पे मरहम जैसा राहत ये पहुंचाता है,
एक स्वर में श्री राम का नारा जब कानो में आता है।

राम नाम से जीवन अपना,
अयोध्या धाम का सुंदर सपना,
राम नाम की अगणित महिमा
ग्रंथ यही बतलाता है,
सारे घाव पे मरहम जैसा राहत ये पहुंचाता है,
एक स्वर में श्री राम का नारा जब कानो में आता है।
                       – अमित पाठक शाकद्वीपी

Friday, December 22, 2023

ब्राह्मणों की महिमा

ब्राह्मण में ऐसा क्या है कि सारी
दुनिया ब्राह्मण के पीछे पड़ी है।
इसका उत्तर इस प्रकार है।

रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदासजी
ने लिखा है कि भगवान श्री राम जी ने श्री
परशुराम जी से कहा कि  →
"देव  एक  गुन  धनुष  हमारे।
 नौ गुन  परम  पुनीत तुम्हारे।।"

हे प्रभु हम क्षत्रिय हैं हमारे पास एक ही गुण
अर्थात धनुष ही है आप ब्राह्मण हैं आप में
परम पवित्र 9 गुण है-
ब्राह्मण_के_नौ_गुण :-
रिजुः तपस्वी सन्तोषी क्षमाशीलो जितेन्द्रियः।
दाता शूरो दयालुश्च ब्राह्मणो नवभिर्गुणैः।।

● रिजुः = सरल हो,
● तपस्वी = तप करनेवाला हो,
● संतोषी= मेहनत की कमाई पर  सन्तुष्ट,
रहनेवाला हो,
● क्षमाशीलो = क्षमा करनेवाला हो,
● जितेन्द्रियः = इन्द्रियों को वश में
रखनेवाला हो,
● दाता= दान करनेवाला हो,
● शूर = बहादुर हो,
● दयालुश्च= सब पर दया करनेवाला हो,
● ब्रह्मज्ञानी,
    
 
 श्रीमद् भगवत गीता के 18वें अध्याय
के 42श्लोक में भी ब्राह्मण के 9 गुण
इस प्रकार बताए गये हैं-

" शमो दमस्तप: शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च।
ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्म कर्म स्वभावजम्।।"

अर्थात-मन का निग्रह करना ,इंद्रियों को वश
में करना,तप( धर्म पालन के लिए कष्ट सहना),
शौच(बाहर भीतर से शुद्ध रहना),क्षमा(दूसरों के
अपराध को क्षमा करना),आर्जवम्( शरीर,मन
आदि में सरलता रखना,वेद शास्त्र आदि का
ज्ञान होना,यज्ञ विधि को अनुभव में लाना
और परमात्मा वेद आदि में आस्तिक भाव
रखना यह सब ब्राह्मणों के स्वभाविक कर्म हैं।

पूर्व श्लोक में "स्वभावप्रभवैर्गुणै:
"कहा इसलिएस्वभावत कर्म बताया है।

स्वभाव बनने में जन्म मुख्य है।फिर जन्म के
बाद संग मुख्य है।संग स्वाध्याय,अभ्यास आदि
के कारण  स्वभाव में कर्म गुण बन जाता है।

दैवाधीनं  जगत सर्वं , मन्त्रा  धीनाश्च  देवता:। 
ते मंत्रा: ब्राह्मणा धीना: , तस्माद्  ब्राह्मण देवता:।। 

धिग्बलं क्षत्रिय बलं,ब्रह्म तेजो बलम बलम्।
एकेन ब्रह्म दण्डेन,सर्व शस्त्राणि हतानि च।। 

इस श्लोक में भी गुण से हारे हैं त्याग तपस्या
गायत्री सन्ध्या के बल से और आज लोग उसी
को त्यागते जा रहे हैं,और पुजवाने का भाव
जबरजस्ती रखे हुए हैं।

 *विप्रो वृक्षस्तस्य मूलं च सन्ध्या।
 *वेदा: शाखा धर्मकर्माणि पत्रम् l।*
 *तस्मान्मूलं यत्नतो रक्षणीयं।
 *छिन्ने मूले नैव शाखा न पत्रम् ll*

भावार्थ --  वेदों का ज्ञाता और विद्वान ब्राह्मण
एक ऐसे वृक्ष के समान हैं जिसका मूल(जड़)
दिन के तीन विभागों प्रातः,मध्याह्न और सायं
सन्ध्याकाल के समय यह तीन सन्ध्या(गायत्री
मन्त्र का जप) करना है,चारों वेद उसकी
शाखायें हैं,तथा  वैदिक धर्म के  आचार
विचार का पालन करना उसके पत्तों के
समान हैं।

अतः प्रत्येक ब्राह्मण का यह कर्तव्य है कि,,
इस सन्ध्या रूपी मूल की यत्नपूर्वक रक्षा करें,
क्योंकि यदि मूल ही नष्ट हो जायेगा तो न तो
शाखायें बचेंगी और न पत्ते ही बचेंगे।। 

पुराणों में कहा गया है ---
विप्राणां यत्र पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता।

जिस स्थान पर ब्राह्मणों का पूजन हो वहाँ
देवता भी निवास करते हैं।
अन्यथा ब्राह्मणों के सम्मान के बिना देवालय
भी  शून्य हो जाते हैं। 
इसलिए .......
ब्राह्मणातिक्रमो नास्ति विप्रा वेद विवर्जिताः।।

 श्री कृष्ण ने कहा-ब्राह्मण यदि वेद से हीन भी हो,
तब पर भी उसका अपमान नही करना चाहिए।
क्योंकि  तुलसी का पत्ता क्या छोटा क्या बड़ा
वह हर अवस्था में  कल्याण ही करता है।

 ब्राह्मणोस्य मुखमासिद्......

वेदों ने कहा है की ब्राह्मण विराट पुरुष भगवान
के मुख में निवास करते हैं।
इनके मुख से निकले हर शब्द भगवान का ही
शब्द है, जैसा की स्वयं भगवान् ने कहा है कि,

विप्र प्रसादात् धरणी धरोहमम्।
विप्र प्रसादात् कमला वरोहम।
विप्र प्रसादात् अजिता जितोहम्।
विप्र प्रसादात् मम् राम नामम् ।।

 ब्राह्मणों के आशीर्वाद से ही मैंने
धरती को धारण कर रखा है।
अन्यथा इतना भार कोई अन्य पुरुष
कैसे उठा सकता है,इन्ही के आशीर्वाद
से नारायण हो कर मैंने लक्ष्मी को वरदान
में प्राप्त किया है,इन्ही के आशीर्वाद से मैं
हर युद्ध भी जीत गया और ब्राह्मणों के
आशीर्वाद से ही मेरा नाम राम अमर हुआ है,
अतः ब्राह्मण सर्व पूज्यनीय है।

और ब्राह्मणों काअपमान ही कलियुग
में पाप की वृद्धि का मुख्य कारण है।

प्रश्न नहीं स्वाध्याय करें।।
हर हर महादेव शिव शंभू 🔱

💐राज 🙏🏻

#जय_सनातन⛳.
 #जय_ब्रह्मण_देव🚩🙏🏻

अश्कों की सौगात

कहती हैं माँ जानकी,  प्रभु को कर के याद । स्वामी कब तक राह निहारूं  कब आओगे नाथ ।। विधि ने भी क्या भाग्य लिखा है, नियति देती मात...