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Saturday, December 3, 2022

ये नज़र नज़र की बात है – नज़र नज़र की बात मे प्रकाशित

ये नजर नजर की बात है 
कि किसे क्या तलाश है,
तू मिलती है फुरसत में 
मुझे हर पल तेरी आस है

ये नजर नजर की बात है 
कि किसे क्या तलाश है, 
तू हंसने को बेताब है, 
मुझे तेरी मुस्कुराहटों की ही प्यास हैं।

प्रेम केवल शब्द नहीं
प्रेम एक एहसास है
मेरा कुछ हिस्सा पास है तेरे 
कुछ तेरा मेरे पास है

कहती हैं फिर प्रियंवदा
मैंने बस इतना जाना है 
जीवन तो बस बहाना है 
इसमें कुछ मनचाहा खोना है 
या अनचाहा पाना है

अस्तित्व की तलाश में 
मैं आई थी तेरे पास मे
 उलझा दिया तुमने मुझे 
कुछ अधूरे काश में

है बात ये भी नजर की 
नजर लग गई है दिल्लगी को 
कभी समझा न मेरे प्रेम को
न मेरी खुशी को

तुम्हारी ओर जाता हर रास्ता अब कहता है ठहरो 
कि तेरी मंजिल का अब ये ठिकाना नहीं है 
आशिकी कैसी भी की हो तुमने 
जाहिर नहीं करना अब बताना नहीं है

नजर की ही तो बात है सारी
कभी साफ कभी धुंधला सा नजर आता है
भाव कभी बिन बोले जाहिर हो जाते हैं
 कभी बेबसी ऐसी की लब बोल नहीं पाता है

बुरी नजर जब पड़ती है किसी पर
फूलों की तरह इंसान भी मुरझाता
खिलता है कभी, कभी महकता है 
कभी टूट कर बिखर जाता है
                 – अमित पाठक शाकद्वीपी 


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