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Saturday, December 3, 2022

अधूरा इश्क कोई

मेरे दिल के किसी कोने में ख्याल तेरा है
जो हाल है तेरा वही अब हाल मेरा है
रहते हो कहां गुम ये जो सवाल मेरा है
तेरा दिल ही तो ठिकाना है जबाव तेरा है
मेरे दिल के किसी कोने में ख्याल तेरा है ।।

न हाल जानते हो न करते हो बातें हमसे
कहो आख़िर कहां ध्यान तेरा है
तेरी कही मानती हूं हर पल मैं
कहो कथनों का कहां भला कोई मान मेरा है 
झूठ है बिलकुल कि ख्याल मेरा है।।

तेरी यादों में गुजरी राते
सारा दिन तूझे याद किया
अंधेरे में छवि तेरी
तू ही तो सवेरा है
हमेशा मेरे दिल के किसी कोने में ख्याल तेरा है ।।

कहती हैं कि बातों से अकसर मन जीत लेते हो
लाखों में करोड़ो में एक यार मेरा है 
मिल जाए कोई मन का तो हो रोशनी जीवन में
कोई अजीज खो जाएं तो उन बीन सब अंधेरा है
सिर्फ इन दिनों दिल में यादों का बसेरा है।।
                – अमित पाठक शाकद्वीपी 

उनसे इश्क़ करके – उनसे इश्क करके संकलन में प्रकाशित

उनसे इश्क़ करके सीखा एक राग है
उन्हीं एहसासों को कलमबद्ध करने की आग है
असर है उनका मेरे दिल पर गहरा
आप ही तय करें प्रेम चिह्न है कोई
या किसी दुर्घटना का दाग है 

आईए परिचय करते है प्रेम के उस रुप से
कड़ाके की ठंड में तपीस मिलती है जैसे धूप से 
थी न दिल में आरजू न ख्वाहिश ही कोई
उस दिन आई अचानक ही मेरे सामने फिर फूट फूट कर रोई

मैंने पूछा क्या हुआ तो जोर से चिल्लाई
रोते रोते ही अपनी आपबीती सुनाई
कहने लगी कि कोई उससे विश्वासघात कर गया
किया प्रेम का नाटक पर ब्याहने से उसको डर गया

देखा जब करीब से तो लगी अप्सरा मुझे
मैंने कहा कि कोई कैसे छोड़ सकता है तुझे
कद्र हीरे की सिर्फ जोहरी ही जानते हैं
बाकियों को क्या पता उसे बेकार पत्थर ही जानते हैं

हो कितनी सुंदर किया भी हसीं श्रृंगार है
मगर ऐसे ही झटपट कहता कैसे कि उनसे प्यार है
बातों ही बातों में दोस्ती की नीव रखी
थे और भी लोग वहां पर हमे तो बस वही दिखी

फिर एक दिन मौका मिला
तो बोल दिया था दिल में जो
इश्क़ उससे और जाहिर न हो उसको
ऐसा भला मैं क्यों करूं 

कहा – लफ्ज़ कुछ अनकहे से कहो तो बयां करूं 
हो आरजू अगर कुछ पुराने जज्बातों को नया करूं एक लफ्ज़ में कैसे जाहिर करूं प्यार क्या है ? 
तेरा नाम लिख दूं कि क्या करूं?

समझ गई प्रेम का रिश्ता जुड़ने को बेताब था 
कुछ दिन दोनों ने फिर मिलकर जोड़ा भी बहुत सा ख़्वाब था

कहने लगी तुम्हे पा कर आज गुलाब सी खिली हूं 
लग रहा है सदियों बाद खुद से मिली हूं
बातें खुल कर जो किया तुमसे 
बस उन्ही चंद घंटों में जिंदगी जी ली हूं

कुछ दिन तो यूं ही गुजरे हंसते हुए
फिर बिगड़ा मौहोल और दोनो के अलग रास्ते हुए

किसी का दिल तोड़ा किसी का आबाद किया
उसकी याद ने फिर सारा जीवन मेरा बर्बाद किया
पतन के गर्त में मैं ये प्रेम का ही तो परिणाम था
खुशी की वजह थी जो गम में भी उसका नाम था

यादों को उसकी कैसे बयां करूं
प्रेम गीत छोड़ कर मैं दर्द से दवा करूं
सुनो तेरी कमी का स्वाद ऐसा है जैसे बीना चीनी के चाय 
गर्माहट भरपूर है जिसमें पर दिल को कैसे भाय ?

पल बदल जाएं ऐसे रिश्तों का सहारा नहीं करते
अब हैं उनके शौक ऊंचे मेरी याद में वक्त वो गुजारा नहीं करते
सामने से भी गुजरते हैं तो इशारा नहीं करते 
भूल चुके हैं शायद नाम हमारा अब पुकारा नहीं करते
                   – अमित पाठक शाकद्वीपी 


 

ये नज़र नज़र की बात है – नज़र नज़र की बात मे प्रकाशित

ये नजर नजर की बात है 
कि किसे क्या तलाश है,
तू मिलती है फुरसत में 
मुझे हर पल तेरी आस है

ये नजर नजर की बात है 
कि किसे क्या तलाश है, 
तू हंसने को बेताब है, 
मुझे तेरी मुस्कुराहटों की ही प्यास हैं।

प्रेम केवल शब्द नहीं
प्रेम एक एहसास है
मेरा कुछ हिस्सा पास है तेरे 
कुछ तेरा मेरे पास है

कहती हैं फिर प्रियंवदा
मैंने बस इतना जाना है 
जीवन तो बस बहाना है 
इसमें कुछ मनचाहा खोना है 
या अनचाहा पाना है

अस्तित्व की तलाश में 
मैं आई थी तेरे पास मे
 उलझा दिया तुमने मुझे 
कुछ अधूरे काश में

है बात ये भी नजर की 
नजर लग गई है दिल्लगी को 
कभी समझा न मेरे प्रेम को
न मेरी खुशी को

तुम्हारी ओर जाता हर रास्ता अब कहता है ठहरो 
कि तेरी मंजिल का अब ये ठिकाना नहीं है 
आशिकी कैसी भी की हो तुमने 
जाहिर नहीं करना अब बताना नहीं है

नजर की ही तो बात है सारी
कभी साफ कभी धुंधला सा नजर आता है
भाव कभी बिन बोले जाहिर हो जाते हैं
 कभी बेबसी ऐसी की लब बोल नहीं पाता है

बुरी नजर जब पड़ती है किसी पर
फूलों की तरह इंसान भी मुरझाता
खिलता है कभी, कभी महकता है 
कभी टूट कर बिखर जाता है
                 – अमित पाठक शाकद्वीपी 


प्रेम पथिक की अभिलाषा –(स्वर्णिम दर्पण में प्रकाशित)

थी प्रेम पथिक की ये आशा  कि फिर उनका दीदार हो हो खड़े आमने सामने  बाते भी दो चार हो बीती बातें याद कर  मुस्कुराएं हम दोनों कुछ न...