उनसे इश्क़ करके सीखा एक राग है
उन्हीं एहसासों को कलमबद्ध करने की आग है
असर है उनका मेरे दिल पर गहरा
आप ही तय करें प्रेम चिह्न है कोई
या किसी दुर्घटना का दाग है
आईए परिचय करते है प्रेम के उस रुप से
कड़ाके की ठंड में तपीस मिलती है जैसे धूप से
थी न दिल में आरजू न ख्वाहिश ही कोई
उस दिन आई अचानक ही मेरे सामने फिर फूट फूट कर रोई
मैंने पूछा क्या हुआ तो जोर से चिल्लाई
रोते रोते ही अपनी आपबीती सुनाई
कहने लगी कि कोई उससे विश्वासघात कर गया
किया प्रेम का नाटक पर ब्याहने से उसको डर गया
देखा जब करीब से तो लगी अप्सरा मुझे
मैंने कहा कि कोई कैसे छोड़ सकता है तुझे
कद्र हीरे की सिर्फ जोहरी ही जानते हैं
बाकियों को क्या पता उसे बेकार पत्थर ही जानते हैं
हो कितनी सुंदर किया भी हसीं श्रृंगार है
मगर ऐसे ही झटपट कहता कैसे कि उनसे प्यार है
बातों ही बातों में दोस्ती की नीव रखी
थे और भी लोग वहां पर हमे तो बस वही दिखी
फिर एक दिन मौका मिला
तो बोल दिया था दिल में जो
इश्क़ उससे और जाहिर न हो उसको
ऐसा भला मैं क्यों करूं
कहा – लफ्ज़ कुछ अनकहे से कहो तो बयां करूं
हो आरजू अगर कुछ पुराने जज्बातों को नया करूं एक लफ्ज़ में कैसे जाहिर करूं प्यार क्या है ?
तेरा नाम लिख दूं कि क्या करूं?
समझ गई प्रेम का रिश्ता जुड़ने को बेताब था
कुछ दिन दोनों ने फिर मिलकर जोड़ा भी बहुत सा ख़्वाब था
कहने लगी तुम्हे पा कर आज गुलाब सी खिली हूं
लग रहा है सदियों बाद खुद से मिली हूं
बातें खुल कर जो किया तुमसे
बस उन्ही चंद घंटों में जिंदगी जी ली हूं
कुछ दिन तो यूं ही गुजरे हंसते हुए
फिर बिगड़ा मौहोल और दोनो के अलग रास्ते हुए
किसी का दिल तोड़ा किसी का आबाद किया
उसकी याद ने फिर सारा जीवन मेरा बर्बाद किया
पतन के गर्त में मैं ये प्रेम का ही तो परिणाम था
खुशी की वजह थी जो गम में भी उसका नाम था
यादों को उसकी कैसे बयां करूं
प्रेम गीत छोड़ कर मैं दर्द से दवा करूं
सुनो तेरी कमी का स्वाद ऐसा है जैसे बीना चीनी के चाय
गर्माहट भरपूर है जिसमें पर दिल को कैसे भाय ?
पल बदल जाएं ऐसे रिश्तों का सहारा नहीं करते
अब हैं उनके शौक ऊंचे मेरी याद में वक्त वो गुजारा नहीं करते
सामने से भी गुजरते हैं तो इशारा नहीं करते
भूल चुके हैं शायद नाम हमारा अब पुकारा नहीं करते
– अमित पाठक शाकद्वीपी