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Sunday, June 26, 2022

अंजान सफर

मन में कुछ बोझ सा लेकर 
राही चलता जाता है 
जीवन की बाधा से अनभिज्ञ
बस कदम बढ़ाता जाता है

अपने मन में व्यथा समेटे 
कुछ कह भी नहीं पाता है
अनदेखे अंजान सफर पर
आगे बढ़ता जाता है 

जंगल नदी मैदान से हो कर
पर्वत से टकराता है 
कोशिश करता लांघ लूँ इसको
ऊँची छलांग लगाता है 

गिरता है सम्भलता है 
आखिर विजय ही पाता है
चट्टान से अडिग इरादे जोश देते है तन को
लिए संकल्प की नहीं रुकेंगे समझाता है फिर मन को

कर्मवीर अपनी राह स्वयं बनाता है
चलते चलते ही मिलती है मंजिल
अपने संघर्ष पर इठलाता है 
अपने भाग्य का बन स्वयं विधाता नियति को ठुकराता है

यहाँ कर्म से भाग्य बदलते 
सबको वह सिखलाता है 
मन में कुछ बोझ सा लेकर 
राही चलता जाता है 

जीवन की बाधा से अनभिज्ञ
बस कदम बढ़ाता जाता है
     -   ✍️  अमित पाठक शाकद्वीपी

Friday, June 24, 2022

आगामी संकलन - मन्तव्य

नमस्कार आदरणीय / आदरणीया , 
              हमारी नई संकलन 'मन्तव्य' हेतु काव्य रचनाएँ आमंत्रित है। रचना का विषय आपकी इच्छा अनुरूप हो जो पुस्तिका के नाम को सार्थक करे । रचना 16 से 20 पंक्तियों में सरल हिंदी भाषा में होनी आवश्यक है । काव्य पूर्णतः आपके द्वारा सृजित होनी चाहिए और अप्रकाशित हो। काव्य से किसी व्यक्ति या समुदाय विशेष को कोई हानि न हो इस लिए विशेष समुदाय या व्यक्ति को इंगित न करती हो । उक्त बातों का ध्यान रखते हुए रचनाएँ आप हमें व्हाट्सएप्प के माध्यम से टेक्स्ट के रूप में अपनी एक तस्वीर और स्वपरिचय के साथ भेजीए ।

* व्हाट्सएप्प नम्बर - 09304444946

* अंतिम तिथी - 5 जुलाई 2022

👉 ISBN : 978-93-5659-326-8

👉 रचनाएँ  400/- के सहयोग शुल्क के साथ आमंत्रित है जिसमे आपको भेजी जाने वाली पुस्तक का मूल्य , प्रमाण पत्र एवं डाक खर्च शामिल है। 

👉 प्रति व्यक्ति केवल 1 ही रचना स्वीकृत होगी ।

👉 पुस्तक मुद्रित हो जाने पर आपसे आपका पत्राचार पता माँगा जायेगा जिस पर आपको पुस्तिका भेजी जाएँगी । 

👉 पुस्तक के संकलन में कुल 1 माह तक का समय लगेगा तब तक आपको धैर्य रखना होगा ।

👉 यदि आपकी रचना स्वीकृत होती है तभी आपको उक्त शुल्क "फोन पे या गूगल पे" के माध्यम से भेजनी होगी अन्यथा नहीं । 

👉 रचना स्वीकृत होने पर आपको रचनाकारों के समूह में जोड़ा जाएगा जहाँ आपको पुस्तक की ईबुक कॉपी और डिजिटल सम्मान पत्र प्राप्त होंगे । 


© Amit Pathak Shakdweepi



Sunday, June 5, 2022

कब दर्शन दोगे गिरधारी , ढूंढ रही तुझे नयन हमारी

कब दर्शन दोगे गिरधारी ।
ढूंढ रही तुझे नयन हमारी ।।
राम रूप में यह जग तारा ।
प्रेम बरसाई बन कृष्ण मुरारी ।। १ ।।

विष्णु के अवतार निराले ।
रोग  कष्ट सब हरने वाले ।।
कैसे भक्ति करू बनवारी ।
किस विधि करू अरज तिहारी ।। २ ।।

मैं मूरख नादान पुजारी । 
जानू न भेद विधान तुम्हारी ।।
जन जन के कल्याण हो करते ।
हर लो प्रभु जी कष्ट हमारी ।। ३ ।।

दरस दिखा कर  कृपा करदो । 
सुख समृद्धि से जीवन भरदो ।।
आएंगे तेरे धाम को स्वामी ।
पूजेंगे मूरत हे अन्तर्यामी ।। ४ ।।

तूने सबकी विपदा टारि ।
कब आएं मुझ दीन की बारी ।।
कब दर्शन दोगे गिरधारी ।
ढूंढ रही तुझे नयन हमारी ।। ५  ।।
                 - स्वरचित अमित पाठक शाकद्वीपी
                          साहित्य संगम बुक्स 


अश्कों की सौगात

कहती हैं माँ जानकी,  प्रभु को कर के याद । स्वामी कब तक राह निहारूं  कब आओगे नाथ ।। विधि ने भी क्या भाग्य लिखा है, नियति देती मात...