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Thursday, August 21, 2025

स्त्री का मन

स्त्री का मन 
तुम क्या जानो स्त्री के मन को,
कैसी इसकी चाह?
वेग प्रबल कोई धार नदी की,
ऐसी यह अमित अथाह।।

मन की पीड़ा मन में रखती,
होठों पर उत्साह,
नारी मन को जान सके न,
परम पिता ब्रह्मा।।

पीकर भेद भाव के विष को,
जलती अंतर्दाह,
सुख में दुख में तुझ संग होती,
देती सदा सलाह।।

कभी क्रोध में बने कालिका,
सब कुछ करें तबाह,
कभी प्रीत के रस में कर लें,
सारा जीवन निर्वाह।।

स्नेह करें तो सब सुख त्यागे,
तुझे दिखाए राह,
नारी जग की अनुपम सृष्टि,
अद्भुत रचना वाह।।

– अमित पाठक शाकद्वीपी 


स्त्री का मन

स्त्री का मन  तुम क्या जानो स्त्री के मन को, कैसी इसकी चाह? वेग प्रबल कोई धार नदी की, ऐसी यह अमित अथाह।। मन की पीड़ा मन में रखती...