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Saturday, May 15, 2021

संघर्ष और लोग

नहीं मालूम कि खत्म कब ये दौर होगा
वक़्त के लम्हों का किस  छोर होगा

विफलता होगी खड़ी सामने 
या सर पर जीत का मौर होगा

हँसेंगे खुशियों में या नाकामी पर रोयेंगे
नहीं होता मालूम कि हम कितना कुछ खोएंगे

फिर कुछ लोग आएंगे तुमको समझाने
गलती तुमने कब कब की है सारा कुछ वो गिनवाने

सामने से देंगे सहारा पीछे से ताने मारेंगे 
सुनते सुनते बोलो भला कैसे न हिम्मत हारेंगे

अपनी खुशियों का नमक तेरे गम के घाव पर लगाएंगे
मेहनत कोई नहीं देखेगा सब विफल ही बतलाएँगे

निराशा में तुम भी उनको कुछ न कुछ सुना दोगे 
अपने चरित्र पर विफलता संग एक और दाग लगा लोगे

इतना सह कर भी जो तुम थोड़े आगे बढ़ गए
यह भी खटकेगी उनको तुम ऐसा कैसे कर गए

निंदा से प्रशंसा तक जो तु अग्रसर होगा
तेरी पल पल की बातों का सर्वत्र खबर होगा

होगा तुझे गर्व स्वयं पर तुम इतना कुछ करने वाले थे
तेरी ख़ुशी में खड़े मिलेंगे जो विफल बताने वाले थे

गाथा तेरी भी संघर्षों की इक दिन गाई जाएगी
लगे रहो बस डटे रहो तुम समय ऐसी भी आएगी 
                       - अमित पाठक शाकद्वीपी
                              बोकारो , झारखण्ड 

दंग रह गया मैं

दंग रह गया मैं उनके हाव भाव देखकर
अपने शरीर पर यूँ घाव घाव देखकर

अपने भी वैरी होते हैं मुझको न कोई ज्ञान था
हमने तो आपको दिया बस सम्मान था

फिर क्या हुआ जो रक्षा के हाथ सबने हटा लिए 
मुझको गिरते देख कर अपनों  ने भी मजे लिए

भेद भाव का क्यों बीज मुझ में भर दिया
अपना पराया का व्यवहार क्यों शुरू किया 

कहते है निजसन्तान को आकाश पर बिठाऊंगा
फिर उसके लिए जितना हो सके तुझे दबाऊंगा

सब बदल जाते हैं यहाँ ये बदलाव का दौर है 
अपने है बस माता पिता , अपने न कोई और है

मूंद ली नजर सभी ने कष्टों में मुझे देख कर 
दंग रह गया मैं उनके हाव भाव देखकर

दंग रह गया मैं उनके हाव भाव देखकर
अपने शरीर पर यूँ घाव घाव देखकर
                     - अमित पाठक शाकद्वीपी
                        बोकारो , झारखण्ड 
                  सम्पर्क सूत्र : 09304444946

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