वक़्त के लम्हों का किस छोर होगा
विफलता होगी खड़ी सामने
या सर पर जीत का मौर होगा
हँसेंगे खुशियों में या नाकामी पर रोयेंगे
नहीं होता मालूम कि हम कितना कुछ खोएंगे
फिर कुछ लोग आएंगे तुमको समझाने
गलती तुमने कब कब की है सारा कुछ वो गिनवाने
सामने से देंगे सहारा पीछे से ताने मारेंगे
सुनते सुनते बोलो भला कैसे न हिम्मत हारेंगे
अपनी खुशियों का नमक तेरे गम के घाव पर लगाएंगे
मेहनत कोई नहीं देखेगा सब विफल ही बतलाएँगे
निराशा में तुम भी उनको कुछ न कुछ सुना दोगे
अपने चरित्र पर विफलता संग एक और दाग लगा लोगे
इतना सह कर भी जो तुम थोड़े आगे बढ़ गए
यह भी खटकेगी उनको तुम ऐसा कैसे कर गए
निंदा से प्रशंसा तक जो तु अग्रसर होगा
तेरी पल पल की बातों का सर्वत्र खबर होगा
होगा तुझे गर्व स्वयं पर तुम इतना कुछ करने वाले थे
तेरी ख़ुशी में खड़े मिलेंगे जो विफल बताने वाले थे
गाथा तेरी भी संघर्षों की इक दिन गाई जाएगी
लगे रहो बस डटे रहो तुम समय ऐसी भी आएगी
- अमित पाठक शाकद्वीपी
बोकारो , झारखण्ड