उनके मुख की ज्योति जस ज्योति,
अनुपम रूप क्या उपमा होती।
उनका पानी जैसे पानी,
मंद मृदुल मुस्कान सुहानी।
वाणी जैसे शहद अधर पर,
सुनना चाहूं ठहर ठहर कर।
कृष्ण कृष्ण सम कृष्ण रहें हो,
तन की शोभा चंद्र बदन ज्यों।
हाथों में ले मधुर मुरलिया,
लट घुंघराले जैसे बदरिया।
© अमित पाठक शाकद्वीपी